Siya Ke Ram UttarKaand Songs

 Siya Ke Ram UttarKaand Songs







॥॥  *उत्तर-काण्ड*  ॥॥

( भरत को भाव से राम निहारें । तुम सम भाई कौन पियारे ॥ )

आए भरत संग सब लोगा । कृस तन श्री रघुबीर बियोगा ॥

गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज॥

( चौदह वर्ष की ये प्रतीक्षा । तेरो भरत की कठिन परीक्षा ॥
प्रभु तुम अवधराज के स्वामी । अंतरमन सुनो अन्तरयामी ॥ )

( चरण पादुका राम को दीन्हि । हर्षित मन रघु धारण कीन्हि ॥
भाई से भाई का नाता । देवलोक से देखें विधाता ॥ )

अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै खानी॥
बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा॥

प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी॥
प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी॥

कनक थार आरती उतारहिं। बार बार प्रभु गात निहारहिं॥
सब रघुपति मुख कमल बिलोकहिं। मंगल जानि नयन जल रोकहिं॥

( राम बचन सुनि पुलित कपिवर ।  प्रेम से छलके नैना झर-झर ॥
धन्य हुआ मैं हे रघुराई । भक्ति तुम्हारी मैंने पाई ॥ )




( असमंजस में हैं रघुराई। पीड़ा मन की कही न जाई ॥
चिंता की है मुख पर रेखा । राजधर्म न होए अनदेखा ॥ )

( राम विवश मुख सिया निहारें । क्षमा करो प्रिय दोष हमारे ॥
प्रकट करुं कैसे व्यथा मैं मन की । अंतिम रैन है अपने मिलन की ॥ )

( अंतरमन कैसे लखन बताए ‌। रहि रहि लोचन भरि भरि जाए ॥
सकल सुलक्षणी रानी सीता । है निर्दोष ये सती पुनीता ॥ )

( सम्मुख कैसे होए सिया के । तोड़ दे कैसे वचन विधा के ॥
व्याकुल राम की व्यथा है ऐसी । पुरलोचन है सरिता जैसी ॥ )

( प्रकट करुं कैसे व्यथा मैं मन की । समझे न कछु जनकनंदिनी ॥
बिधना का ये खेल है कैसा । विवश न हो कोई राम के जैसा ॥ )

( राम सिया दुख सहि न पावे। प्रेम व्यथा यह किसको सुनाए ॥
चली जा रही हर्षित वन में । रोवे लक्ष्मण मन ही मन में ॥ )

( केहि कारण यह दंड मिला है । धर्म ने कैसे आज छला है ॥ )




( समय ने कैसा चक्र चलाया । सुत ने पितु पे सश्त्र उठाया ॥
संबंधों से दोनों अपरिचित । भाग्य में जाने क्या है अंकित ॥ )

( विडंबना है युद्ध में आई । विधना ने‌ ऐसी नियति बनाई ॥
प्रेम दुलार के जो‌ अधिकारी । खड़े शत्रु बन राम तिहारी ॥ )

(चारों बहनें हर्षित पुलकित । प्रसन्नता है मुख पर अंकित ॥
देवी समान ये जनक-सुताएं । सिया सखी बन झूला झूलाएं ॥
आनंदित हो लगी झुलाने । मगन भई हैं सारी बहनें ॥ )

( चले रघुराई सिया लियावन । अवधपुरी की शोभा बढ़ाने ॥
राजमहल सूना बिन सीता । बारह वर्ष है युग सम बीता ॥ )

(तिल तिल पग धारे रघुराई । नियति क्या सम्मुख ले आई ॥
राम के मन की राम ही जाने । करुं व्यथा ये कौन बखाने ॥ )

( दोषी मैं हूं सिया तुम्हारा । अंतरमन ने मोहे धिक्कारा ॥
ग्लानि करुण में परिवर्तित है । राम सिया का प्रेम अमिट है ॥ )

( समझो व्यथा मेरे व्याकुल मन की । मोल न कोई इन असुंअन की ॥
प्रेम कहे संग चलूं तिहारी । स्वाभिमान रोके मन मारी ॥ )

( प्रेम बिना जीवन लगे भारी । बिन सम्मान न जनकदुलारी ॥
त्याग सकूं न निज सम्माना । क्षमा करो मोहे भगवाना ॥ )

( राम विवश मुख सिया निहारें । क्षमा करो प्रिय दोष हमारे ॥
प्रकट करुं कैसे व्यथा मैं मन की । अंतिम रैन है अपने मिलन की ॥ )

( त्याग सिया का है रंग लाया । नर नारी का भेद हटाया ॥
नर नारी भय एक समाना । होये न अब स्त्री अपमाना ॥ )

( बीते समय चक्र की छाया । नियति दिखाये  अपनी माया ॥
माताएं सुख देख के सारी । देह त्याग गईं स्वर्ग के द्वारे ॥ )

( बीता समय वह अवसर आया । देखि राम सुत मन हर्षाया ॥
राजतिलक की की तैयारी । सुखी अवध के सब नर नारी ॥ )

( लव कुश का अभिषेक कराये । स्वर्ण-मुकुट निज हैं पहनाये ॥
अब रघुकुल के लव कुश राजा । धर्म-पू्र्वक करीहैं काजा ॥ )

( लक्ष्मण राम के प्राण समाना । पर आवश्यक धर्म निभाना ॥
ऐसी परीक्षा राम ने दीन्हि । त्याग लखन सब सिद्ध कर दीन्हि ॥ )

( शेषनाग लक्ष्मण अवतारा । आज सजल है सागर धारा ॥
चला अवध से राम का प्यारा। अंखियन से बहे अविरल धारा ॥ )

( आप हमारे पितु सम दाता । मोहे उऋण करो हे ताता ॥ )

( सबको धर्म सिखाने वाले । मर्यादा को निभाने वाले ॥
छोड़ें अवध को अवध के स्वामी । श्रीनारायण अन्तरयामी ॥ )

( मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर । लीला मनोहर प्यारी रचकर ॥
राम से बनकर के श्रीरामा । चले अवधपति अपने धामा ॥

मानव रूप का अब विश्राम है । हरि का धाम तो परम धाम है ॥
करने लगें हैं महा-प्रस्थाना । हैं जगदीश्वर राम भगवाना ॥

अवध के जन के नेत्र सजल हैं । सिहर उठा ये सरयु-जल है ॥
हे विधना कुछ करो उपाई । रोक लो राम को अवध में आई ॥

सुत लव-कुश और गुरु वशिष्ठ । छलके प्रेम सुधा बन निष्ठा ॥
भाव-विभोर हैं सारे परिजन । राम वियोग में रोये क्षण-क्षण ॥


ऐसी छवि जगत में नाहिं । राम रंग जन अंग समाहि ॥
जीवन में जीवन की भाषा ‌। मानवता की तुम परिभाषा ॥

धर्म कर्म अवतार चले हैं । सबके पालनहार चले हैं ॥
काल चक्र की नियमित गति है ‌। स्वयं महाप्रभु की सहमति है ॥

नारायण से नर की लीला । नर से नारायण का चोला ॥
तू अनादि तेरो रुप अनंता । जय परमेश्वर जय भगवन्ता ॥ )


राजेन्द्र शाश्वत श्रीमते ।
जयत्रे जनार्दन सौम्य श्रीराम ॥
मंगल भवन अमंगल हारी ।
द्रबहु सुदसरथ अचर बिहारी ॥


सिया के राम Last songs





जहाँ भजहीं मन, वहीं मिले श्री।

प्रभु रघुनायक, भक्त हितैसी।।


प्रभु श्री राम, बसहीं कण-कण में।

दर्शन पाई वो, क्षण-प्रतिक्षण में।।


हृदय में राम, और सिया विराजै।

दिव्य मनोहर, रूप अतिसाजै।।


जय श्री राम, जय जय वैदेही।

निरखे प्रजा, अति रूप स्नेही/सनेही।।


(राम सिया राम सिया राम जय राम-8)


इस संसार में जिसके हृदय में, प्रभु राम और माता सीता के प्रति पुर्ण श्रद्धा का भाव निरंतर बना रहेगा, उनके हृदय में सदैव बसेंगे सिया राम।।


राम सिया राम सिया राम जय जय राम।।




Video Links :- https://youtu.be/y8e1WWnEHqk



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