॥॥ *बाल काण्ड* ॥॥ (0:00- 16:45) धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहुँ चीन्हा रघुपति कृपाँ भगति पाई। अति निर्मल बानीं अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई ॥ मै नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई। राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई ॥ मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना। देखेउँ भरि लोचन हरि भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना ॥ बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना। पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना ॥ सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥ सरद चंद निंदक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के॥ सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदंबिका रूप गुन खानी॥ उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग अनुरागीं॥ बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी॥ उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा॥ उर अनुभवति न कहि सक सोऊ। कवन प्रकार कहै कबि कोऊ॥ एहि बिधि रहा जाहि जस भाऊ। तेहिं तस देखेउ कोसलराऊ॥ गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा। अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा॥ दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ॥ सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत जयमाला॥ गावहिं ...
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